हर रात में लिखती हूं तुम्हारे पीठ पर मेरे एकांकी जीवन की व्यथा सदियाँ गुजर गई और गुजरती रहेंगे उस रात में तुम्हारा जाना तुम्हें बुद्ध बना गया और आज तुम्हारे पीठ पर मैं छोड़ रही हूं एक प्रश्न मेरा जाना बुध्द या युद्ध बन जाता या फिर तुम किसी अश्लील भाषा की तरह अपने सभ्य भाषा के संसार से मुझे त्यागकर महान बन जाते शायद जैसे मैं रोज आज की तारीख में त्यागी जा रही हूँ तुम हर उस जगह पर लौट आवोगे जहाँ तुम्हारी गाधाऐ गायी जायेगी पर तुम कभी नहीं लौटोगे मेरे विरह से तपती दुनिया में (अंतिम कविता इस सफर की)