गाय के संबोधन से नवाजी जाती हैं कुछ स्त्रियाँ कहने/सुनने वालों के लिए तो वे बन जाती है गुणगान का पात्र भी पर,हमेशा से उनके जीवन में अहम भूमिकाएं निभाती हैं खूँटियाँ दूर होने की कोशिश मात्र से लाल हो जाती हैं उनकी ग्रीवाएं और कुछ स्त्रियाँ गाय, खूँटी,रस्सी जैसे सम्बोधनों को उतार कर चल देती हैं ऐसे में दिग्भ्रमित हो उठता है उन तथाकथित पुरुषों का अहंकार जैसे कि सार्वजनिक हो गई हो उनकी देह उनके गले में रस्सी का ना होना हमेशा अखरता है उन्हे ऐसे में एकतरफा आसनों पर आसीन हो काटने लगते हैं उन स्त्रियों के नाम बदचलनी के प्रमाणपत्र ऐसे पुरुषो को जो हो चुके हैं कुण्ठा का शिकार अब उन्हें भूलना होगा खूँटी को जमीन में गाड़ने की कला क्योंकि अब उन तमाम औरतों ने बदल दी है गाय होने की अपनी परिभाषा |