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मार्च, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दुनिया के हिसाब

१. दुनिया कहती थी वो बहुत हंसती है उसकी मुस्कुराहट देखने जब मैं गया चेहरे पर तो मुस्कान थी पर हथेलियां भीगी हुई थी जिसका जिक्र दुनिया नहीं कर रही थी २. जिस दिन तुम एक औरत का दुख समझ जाओगे उस दिन हल के नीचे आने के बाद भी एक बीज अंकुरित क्यों होता है उसका सार समझ जाओगे ३. पुरुष को अगर औरत का दर्द समझना है तो उसकी पहली शर्त यही है कि उसे पहले पुरुष होना पड़ेगा ४. दुख तो अपने ही देते हैं अजनबी तो धक्का लगने पर भी सॉरी कहकर चले जाते हैं ।

क्षणिकाएं

1. तुम फुर्सत में मुझे याद करते थे और तुम्हें याद करते-करते मुझे और किसी काम के लिए फुर्सत ही नहीं मिलती थी अजीब है ना यह प्यार भी 2. हमने तो साथ चलने के लिए साथ मांगा था तुमने तो साथ छोड़ने के लिए साथ मांगा फिर भी खामोशी से तुम्हारा साथ देकर हम निकल गए 3. सिज रही है एक कविता जहां पर आप रहते हो आपके ह्रदय के ताप की अग्नि में पकते हैं मेरे शब्द देह का नमक मिलाकर बनती हैं एक कविता

मेरा अकेलापन

खूबसूरत था मेरा अकेलापन  जिसमें मैं थी केवल मैं पर तुम ज्वार की तरह दस्तक दे गए  और तहस-नहस हो गया  मेरा शेष जीवन  उदास नैनों में बसती है एक नदी  जो तुम्हारे अपमान के  छालों को बहाती हैं हरदम  कितनी ही दफा चाहा मैंने  मिटा दू उन स्मृतियों को  जहां तुमने दिये जख्मों का  एक पर्वत सा खड़ा हैं  पर पाषाण पर खींची रेखा  ना मिटी सकी ना  समय की धूल ठहरी सकी  मुंडेर पर बैठे तुलसी  आसमान में ठहरा चांद  दिए की लौ में अक्सर  भाप लेते हैं मेरे आंखों से बहत जल  खूबसूरत था मेरा अकेलापन  जिसमें मैं थी केवल मैं पर आज वहां गूंजती है  मेरी सिसकियों की ध्वनि  और खारे पानी का जलाभिषेक

औरत का प्रेम

किसी औरत का प्रेम  दिहाड़ी समझकर  मत भोगना  हर औरत की कमर  देख कर तुम जो  अपने नोटों को घुमाते हो ना  वेश्यावृत्ति एक धंधा है  औरत की जात बिकाऊ नहीं होती

गर्भनाल की जमी

हमेशा एक दरवाजा  खुला रखना उन बेटियों के लिए  जो कुए की तरफ मुड़ने के पूर्व  मुड़ जाए उस घर की तरफ  जहां दीवारों ने सहेज रखी हैं  उनकी पहली किलकारी । चखने दो  उन्हें पुन्हा  उस नारियल का पानी  जिसकी जड़ को उन्होंने सिंचा था गुनगुनाते कोई फिल्मी गीत जीने की आस खत्म हुई उन बेटियों को  पुनः स्थापित करने दो संवाद  मां के आंचल के साथ  अलमारी में रखे उनकी  पुरानी चीजों के साथ  जिस पर आज भी मौजूद हैं  नन्ही उंगलियों से लेकर जवां हुए उनके हाथों का स्पर्श इतनी भर गुजारिश है मेरी  पितृसत्ता के पहरेदारों  बेटियों को वंचित ना करो उनकी गर्भनाल की जमी से 

क्षणिकाएं

1. औरतें अजीब होती हैं लोग सच कहते हैं  क्यू की उसके जनने की खबर तुम दिल से नहीं दिमाग से सुनते हो । 2. बाँस के पास जाने से सब डरते हैं पर सच्चाई तो यह  है बाँस इसलिए अपने इर्द -गिर्द काँटों  का जंगल खड़ा कर देता है  कही दुनिया उसके खोखलेपन  का राज़ जान न जाए हम भी बाँस की तरह ही जीते हैं । 3 कुछ पुरूष चाहते थे औरत आज भी  जंगल में ही बसे और वे कमान उटाकर शीकार पर निकल पड़े औरत को वो देह से जानते थे इसलिए देह की भाषा बोलते थे । 4. तुम्हारे साथ की उपस्थिति के लिए  मैंने साथी होने से अधिक  स्वीकार किया सहयात्री होना नहीं अभिलाषा उठी कभी अपने कदमों को रोक  तुम्हारे साथ छांव में सुस्तानेकी  स्वार्थ केवल इतना भर रहा तुम्हारे पग राह को छूने से पहले उस राह के कंकड़ पत्थरों को मेरे तलवे बीन सके ।

काश तुम आते इस बार

हर कोई सराबोर रहा  होली के रंगों में आसमान के माथे भी सजा इंद्रधनुष बिना चुके पर  इस बार भी रखा तूने मेरा माथा सुना ठीक वैसे ही  जैसे घने बीहड़ में  रातरानी के फूल का खिलना  और बिना किसी के स्पर्श के मुरझा जाना झूठ कहती है दुनिया  कि होली पर मिट जाता है  द्वेष राग केवल शेष बचता है अनुराग काश तुम आते  इस बार  मुट्ठी में भरकर ढेर सारा प्यार  तुम्हारे आने के दस्तक भर से  मैं काली नदी की तरह शर्माती और छुप जाती तुम्हारे ही बाहों में  काश इस बार तुम आते  मेरे चेहरे पर स्मित हास्य पुनः जीवित होता  मेरे भी देहरी पर गुलाल  सज जाता काश तुम आते इस बार

चंद छोटी कविताएं

1. हमेशा एक दरवाजा  खुला रखना उन बेटियों के लिए  जो कुए की तरफ मुड़ने के पूर्व  मुड़ जाए उस घर की तरफ  जहां दीवारों ने सहेज रखी हैं  उनकी पहली किलकारी । 2. कुछ बिखराव समेटने के लिए नहीं होते हैं ! ठीक उसी तरह जहाज  डूबने के पच्छात गहरे पानी में सालों साल नमक के परतों तले  बेजुबान पड़ा रहता है कुछ बिखराव समेटने के लिए नहीं होते हैं बस आंखों की जमीन पर नमक की खेती उगाते रहते हैं ‌। 3. एक वृक्ष की देह जलाते समय हम भूल जाते हैं  उसके दिये सांसों का हिसाब ठीक उसी तरह एक स्त्री को तकलीफों के बीच  अकेला छोड़कर जब कोई  अहसान फरामोशी कर जाता है तब वो भूल जाता है सृष्टि के निर्माण के लिए उमड़ा उसके छाती का दूध । 4. हमने अमृत से सींचा पर वह डसना नहीं भूले  आज के जनजाति के  सांप थे वे  उनकी  सभ्यता के  मायने अलग जो थे ।

युद्ध

युद्ध के ऐलान पर  किया जा रहा था  शहरों को खाली  लादा जा रहा था बारूद  तब एक औरत  दाल चावल और आटे को  नमक के बिना* बोरियों में बाँध रही थी  उसे मालूम था  आने वाले दिनों में  बहता हुआ आएगा नमक  और गिर जाएगा  खाली तश्तरी में   वह नहीं भूली अपने बेटे के पीठ पर  सभ्यता की राह दिखाने वाली बक्से को लादना  पर उसने इतिहास की  किताब निकाल रख दी अपने घर के खिड़की पर  एक बोतल पानी के साथ क्योंकि, यह वक्त पानी के सूख जाने का है..!