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हिसाब बाकि है

दिसंबर के जाने से  या फिर जनवरी के आने से  फरवरी के ठहरने से  भी क्या होगा  ? भाग्य में लिखा है  तुम्हारा न मिलना  और मेरा न लौटना कैलेंडर केवल कुछ पन्नों का महज एक दस्तावेज है मेरे लिए जिसकी हर तारिख पे नमक का हिसाब आज भी बाकी है  

अबोध लड़की का दान

मुझे याद है वो अबोध लडकी अपने नन्हें हाथों से अपनी चोटियाें को संवारती मुझे याद है वो निच्छल चेहरा लाल रंग की गुडिया बस सपना था हाथों से ककंड बीच सपनों को चुनना जिस पर हरदम भय व अवसाद की मँडराती थी छाया कहते हैं माँ ने इस लडकी को किसी और की गोद भरने के लिये कर दिया दान दे दिया गोद दान तो होती हैं बेटियां लेकिन यहाँ तो बचपन ही छीन लिया माँ शब्द का अर्थ विषाद बना मूक हुई वाणी उसकी आँखें ही बोलती रही वह भी अवसाद भरे जख्मी शब्द परिपक्वता का दामन थाम लिया मन की धरती पर कभी किसी ने ममता के बीज न बोये मन बोझ से दबा रहा समय के पहले ही पंखो को खोल दिया नन्हीं सी पीठ पर वक्त का भार झेल लिया भूत से भविष्य तक सोचती रही अबोध बच्ची क्यों दिया दान बचपन में ही क्यों दिया जाता है दान यौवन पर क्यों होती है बटियों का ही दान कावेरी

बेवफ़ाई का समंदर

रात बिरात  एक कसक सी उठ जाती है शब्दों को आंसुओं से भिगो कर  जलाती हू एक दिया  उसकी राख से  दर्द का काजल नैनों मे सजाती हूँ  तुम्हारे बेवफाई के संमदर मे तैरने लगता है नैनों का काजल

क्षणिकाएं

1 मैं उम्र के उस पड़ाव पर तुमसे भेंट करना चाहती हूं जब देह छोड़ चुकी होगी देह के साथ खुलकर तृप्त होने की इच्छा और हम दोनों के ह्रदय में केवल बची होगी निस्वार्थ प्रेम की भावना क्या ऐसी भेंट का  इंतजार तुम भी करोगे 2 पत्तियों पर कुछ कविताएं  लिख कर सूर्य के हाथों  लोकार्पण कर आयी हूं  अब दुःख नहीं है मुझे  अपने शब्दों को  पाती का रुप  न देने का  ना ही भय है मुझे  अब मेरी किताब के नीचे  एक वृक्ष के दब कर मरने का 3 आंगन की तुलसी पूरा दिन तुम्हारी प्रतिक्षा में कांट देती है पर तुम्ह कभी उसके लिए नहीं लौटे 4 कितना कुछ लिखा मैंने संघर्ष की कलम से समाज की पीठ पर कागज की देह पर उकेरकर किताबों की बाहों में  उन पलों को मैं समर्पित कर सकूं इतने भी  सकुन के क्षण  जिये नहीं मैंने 5 मेरी नींद ने करवट पर सपनों में दखलअंदाजी  करने का इल्जाम लगाया है