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जून, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मृत्यु

उस दिन बाहर की बारिश तेज थी और उसमें बहुत सी चीखें दब रही थी और उसी दिन बहा था एक देह सांसो से आलग होकर ईश्वर की ओट में जाकर उसने मांग ली थी उस ईश से अंतिम भेट इस देह को अग्नि के समर्पित न कर बहा ले जा पानी की निर्मल धार में बेघरों के लिए अग्नि से अधिक सुखद होता है जल की निर्मल धार कारण सबको पता होता है पर कारण जो बने उनके नामों पर हे ईश्वर आप परदा डाल देना लाज का

नदी का दर्द

 हर पार्वती के हिस्से  नहीं होते शिव  फिर भी वो अर्द्धनारीश्वर के रूप में विचरती रहती है इस धरा पर ! उसे उड़ने के लिए तो कहा जाता था  पर उतनी ही ताकत से उसके पंखों को भी खींचा जाता था उसे सिंप की तरह  संमदर में उन्मुक्त तो छोड़ा जाता था लेकिन मोती की तरह चमकने नहीं दिया जाता था मेरे तकिये ने सहेजा है मेरे जख्मों का नमक और इन दिवारों ने दबा रखी है मेरी ह्रदय की हुंकार को आसान है जानेवाले के लिए पर पिछे जो अकेला छुटता है वो अपने रक्त रंजित हाथों से खुद को खुद के पास लौटा देता है तूमारा जाना महज भीड़ में से एक चेहरा गायब होना नहीं था बल्कि मेरे शहर का खाली होना था कुछ घरों में औरतें जलती है सुबह से शाम तक और रात होने पर शरीर पर उग आये फफोले को धो देती हैं नमक के पानी से तुम्हारी अधूरी बातें तुम्हारा अधूरा स्पर्श मेरी अधूरी ख्वाहिशे शून्य से लेकर विरामतक मेरा हमसफ़र है आंखों के किनारे पर एक बून्द आंसू छिपा रहता है मेरे ह्रदय के साथ हर क्षण मौन संवाद करता रहता है डायरी के अंतिम पन्ने पर लिखी एक कविता हो तुम बया न कर पाऊंगा मैं कभी वो दर्द हो तुम। कभी कभी  ये ज़िन्दगी भी  जमीन से टूटे हुए  ज

प्रेम

प्रेम वो नहीं जो तुमने किया अपनी सुविधा के अनुसार बल्कि प्रेम वो था  जो तुम्हारे पास समय की  कमी के कारण तुम्हारे आफिस की फाइलों में बंद रहा  और मैं दिन महीने साल दर साल प्रतीक्षारत रही अक्सर शाम चाय चढ़ाते समय जब मैं तुम्हे पूछा करती थी  आज कितनी बार चाय हो गई तुम झूठ कहते थे हर बार पर पूरे दिन की दिनचर्या में जितनी बार तुम्हें याद करती प्रत्येक बार एक बूंद चाय की  तुम्हारे होंठ से मेरे होंठों तक का  सफर तय करती अलमारी में है आज भी खाली लाल रंग की साड़ी की जगह  जितने फिक्र से टटोलती थी  तुम्हारा बटुवा  उतनी ही बेफिक्री से प्रत्येक बार मांगती थी तुमसे हर त्यौहार में घुले रंग की भाँति पहनी साड़ी सी तुम्हारे प्रिय रंगों को बदलता देख  मैं हर बार मुस्कुराती थी  मन ही मन प्रेम वह था जो मैंने  अभावों में भी है जिया तुम्हारे छोड़ कर चले जाने के बाद भी  उपहार में तुम्हारे दिये हुए  आंसुओं को   तुम्हारी बदनामी के भय से  कभी अपनी आंखों से बहने नहीं दिया  यद्यपि हृदय से उठती हुंकार पर हर बार मेरे होठों पर विरह का एक *गीत* रख दिया और मैने उसे ही अपना जीवन का संगीत मान लिया

अभावों के बीच

अभावों की जडें मेरे जीवन में  हर जगह पसरी है घर के भीतर भी मन के भीतर भी लौट आती हुं मै  उन तमाम जगहों से जब सपने मेरे जेब पर भारी पड़ने लगते हैं बाहर का  बंसत और बारिशों की धार भी मेरे मन का सुखापन  नहीं सिंच  सका कभी मन ने हमेशा जीया किसी के मन से न जुड़ने का आभाव इसतरह शायद इस बारिश में भी इन अभावों की जड़ों को खूब पानी मिलेगा  फुलने फलने के लिए अधूरे सपनो का भार जेब पर पड़ती रहेगी निरंतर

जरूरी था

अतीत में मिले जख्मों से वर्तमान को बोझिल न होने देने का प्रण लिया है मैंने क्षमा करने का जिम्मा केवल औरतों के ही हिस्से है और औरत हर बार क्षमा करती है इस भ्रम को तोड़ देने का फैसला किया है मैंने