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मार्च, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक चिट्ठी

एक चिट्ठी गुम नाम पते पर  लिखनी है मुझे  उसके नाम जिसने  गिरवा दिया था  मेरे माथे पर  एक रंग सिंदूरी  और आती रही उससे गंध बरसों तक जख्मों की    जिसने मेरे उन्नत शीश को  झुका दिया अनगिनत बार  मेरे आंखों में बसे सुनहरे सपनों को  करके छिन्नतार  बहता रहा तेजाब बरसों तक रखता रहा मेरी अंजूरी में  भंभकते अंगारे और  वर्षों तक मैं देती रही  क्षमा का दान उसे  हर वो सप्तपदी  उसके साथ तय की थी  वह अभिशाप बन  मेरे बदन पर रेंगती  रही   विषयले सांप समान  उन सभी क्षणों को  मैं रखना चाहती हूं  चिट्ठी में और छोड़ आना चाहती हूं  गांव की सीमा पर  बड़ी मां के उस विश्वास के साथ  अब तुम्हें किसी की नजर नहीं लगेगी  भेजनी है मुझे एक चिट्ठी उस गुमनाम पते पर

कुछ कविताएँ

1. मैं भोर के माथे पर तिलक लगाकर रात के पीठ पर तुम्हारा नाम लिखते हूं तुम्हारे लौटने की उम्मीद में इस तरह में दिन-रात की प्रहरेदार बन तुम्हारे लौटने की प्रतीक्षा करती हूं 2. तुम्हें फकत याद होगी मेरी हड्डि वीहिन री ढ़ उन दिनों बात-बात पर झुका करती थी मैं 3. कभी-कभी कुछ जगहों से कुछ रिश्तो से जाना हम नहीं चाहते हैं भरपूर कोशिश करते हैं बना रहे साथ बना रहे शहर हमारे साथ पर एक समय ऐसा आता है पाषाण पर भी बीज उगाने का हौसले रखने वाले हम अपनों के चुभते शब्दों से बदले व्यवहारों से निराश हो उठते हैं नम आंखों से भारी कदमों से अलविदा कह जाते हैं

कविता

विश्व कविता दिवस पर कविता एक कतरा उजाला  टांक देती है अंधेरे के जेबें पर कविता  करती हैं स्पर्श उस खारे पानी के जल को जो अन्नदाताओं के गमछें भिगो देता है कविता तुलसी का इन्तजार और चाँद के बेवफाई  का किस्सा हैं कविता सरहदों से  न लौटे  उन्ह अपनों से बिछुड़े परिजनों के आंखों का सवाल हैं