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मार्च, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक चिट्ठी

एक चिट्ठी गुम नाम पते पर  लिखनी है मुझे  उसके नाम जिसने  गिरवा दिया था  मेरे माथे पर  एक रंग सिंदूरी  और आती रही उससे गंध बरसों तक जख्मों की    जिसने मेरे उन्नत शीश को  झुका दिया अनगिनत बार  मेरे आंखों में बसे सुनहरे सपनों को  करके छिन्नतार  बहता रहा तेजाब बरसों तक रखता रहा मेरी अंजूरी में  भंभकते अंगारे और  वर्षों तक मैं देती रही  क्षमा का दान उसे  हर वो सप्तपदी  उसके साथ तय की थी  वह अभिशाप बन  मेरे बदन पर रेंगती  रही   विषयले सांप समान  उन सभी क्षणों को  मैं रखना चाहती हूं  चिट्ठी में और छोड़ आना चाहती हूं  गांव की सीमा पर  बड़ी मां के उस विश्वास के साथ  अब तुम्हें किसी की नजर नहीं लगेगी  भेजनी है मुझे एक चिट्ठी उस गुमनाम पते पर

तना हुआ वृक्ष

तुम देख रही हो ना नदी के तट पर नारियल के तने हुए वृक्ष असंख्य वे खड़े रहते हैं नदी के लिए हर अच्छे-बुरे मौसम में होना चाहता हूं मैं भी नारियल का वह वृक्ष खड़ा /झूमता /तना हुआ तुम्हारे लिए जीवन के सभी मौसम में तुम बनो नदी म ैं  बनूं नारियल का वृक्ष झूमता हुआ / तना  हुआ २३/०१/२०१७