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संदेश

उसे हर कोई नकार रहा था

इसलिए नहीं कि वह बेकार था  इसलिए कि वह  सबके राज जानता था  सबकी कलंक कथाओं का  वह एकमात्र गवाह था  किसी के भी मुखोटे से वह वक्त बेवक्त टकरा सकता था  इसीलिए वह नकारा गया  सभाओं से  मंचों से  उत्सवों से  पर रुको थोड़ा  वह व्यक्ति अपनी झोली में कुछ बुन रहा है शायद लोहे के धागे से बिखरे हुए सच को सजाने की  कवायद कर रहा है उसे देखो वह समय का सबसे ज़िंदा आदमी है।
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आश्वस्त हूँ

..... जब जब मारी गई नदियां  तब तब नदी की देह पर उगी   पपड़ियों के इतिहास को देख  कई रातों तक सोई नहीं यह धरती  देखे उसने कितने ही अंतिम संस्कार  नदी की देह पर उगे विश्वासों के सदियाँ बीत गईं और औरतों के गर्भ से  मनुजों ने इस भूमि पर  स्थापित किया अपना साम्राज्य  पर वे जरा भी विचलित न हुए   उसी भूमि के नित्य होते गर्भपातों से रोज एक नए युद्ध की नीव पड़ रही  बारूदी सुरंगें धरती की कोख तक पहुँच रही तुम क्षमा मत करना धरती माँ  कि हम भर रहे हैं तेरा आंचल बारुद से  कि हम भर रहे हैं तेरी कोख तेजाब से  अंधाधुंध फैलते विकास के कारखाने  गला रहे तेरी काया रोज-ब-रोज मेरी कविताएँ उदास और अकेली हैं  कि एक दृश्य उभरकर आता है  कि उसे शब्दों का पोशाक पहनाकर  मैं चीखती हूं - अब बस करो मैं नहीं जानती मेरी चीखें किन पातालों और खोहों से गुजरती हैं नहीं जानती कहाँ तक पहुँच रही है मेरी आवाज लेकिन आश्वस्त हूँ शब्द बचे हैं जब तक हमारे सीने में  बची रहेगी यह धरती भी।

हिसाब नमक का

दिसंबर के जाने से  या फिर जनवरी के आने से  फरवरी के ठहरने से  भी क्या होगा  ? भाग्य में लिखा है  तुम्हारा न मिलना  और मेरा न लौटना कैलेंडर केवल कुछ पन्नों का महज एक दस्तावेज है मेरे लिए जिसकी हर तारिख पे नमक का हिसाब आज भी बाकी है

नवस्वप्न

              रविवार का दिन था। हर रविवार येल्लापुर में बाजार लगता। सुबह से ही बाजार में चलह कदमी होने लगी। सौदा बेचने वालों के चेहरे पर मुस्कान थी। नफा या नुकसान का भाव अभी तक चेहरे पर नहीं उभरा था। उभरेगा, सूरज के सिर पर चढ़ने तक। बीच सड़क पर टेंपो, ट्रक रुके थे, जो हुबली, गदग से सब्जियां, फल ,फूल  लेकर आए थे। मजदूर बड़ी-बड़ी सब्जियों की टोकरी और गट्ठर ढो रहे थे। लंबे कद काठी वाले मजदूर बड़े-बड़े कदमों से रास्ता नाप रहे थे। वहीं  छोटे कद वाले मजदूरों को देखकर लगता था वे आगे कम पीछे ज्यादा चल रहे हैं। मानो वहीं रुके - रुके से हों। इसी बीच आसपास के गांव से सब्जी फल लेकर आई औरतें सड़क किनारे सौदा बेचने के लिए जगह छेंकने लगीं। वहाँ एक तनातनी हमेशा मची रहती थी, बाहर से आकर व्यापार करने वाली औरतें और इसी शहर या फिर आसपास के गांव की औरतों के बीच। कभी-कभी मामला इतना बिगड़ जाता था कि क्लेश शुरू हो जाता और वे सड़क के बीचोबीच झोंटा पकड़कर या कपड़े फाड़ कर हंगामा करने लगती । मामला बिगड़ने पर बाजार के चौक का पुलिस आकर अ...

संवाद से समाधि तक

तुम चले गए हो और मेरे पास जो बचा है वो केवल गुजरे समय की एक समाधि है जिस पर रोज सुबह फुल विश्राम करते हैं और रात में अंतिम निद्रा में लीन हो जाते हैं और मेरे आंखों के जलाशय में रक्त वर्णी फुल फिर जन्म लेते हैं फिर मुरझा जाते हैं और कुछ इस तरह मेरा प्रेम संवाद से समाधि तक के महाप्रस्थान की ओर बढ़ रहा है

तना हुआ वृक्ष

तुम देख रही हो ना नदी के तट पर नारियल के तने हुए वृक्ष असंख्य वे खड़े रहते हैं नदी के लिए हर अच्छे-बुरे मौसम में होना चाहता हूं मैं भी नारियल का वह वृक्ष खड़ा /झूमता /तना हुआ तुम्हारे लिए जीवन के सभी मौसम में तुम बनो नदी म ैं  बनूं नारियल का वृक्ष झूमता हुआ / तना  हुआ २३/०१/२०१७

अलगाव

अलगाव ये शब्द  एक अरसे से चल रहा है  मेरे साथ  यदाकदा आंखों से  बहता ही रहता है  आज सोचती हूंँ  इतनी बार ये शब्द  मेरी आंसुओं में बहा है  फिर भी इसका अस्तित्व  क्यों नहीं मिट रहा है ? हर रिश्ते में ये शब्द  इतनी शिद्दत के साथ  क्यों अपनी जगह बन जाता है शायद जिस दिन मैं  पूर्ण रूप से  टूट वृक्ष बन मिट्टी से उखड़ कर  मिटने की प्रार्थना करूंगी  उस ईश से उस  दिन ये  मेरे साथ ही दफ़न होगा  जब सांसें छोड़ देगी देह का साथ उस दिन मैं बिदा हो जाऊगी अंतिम इच्छा के साथ उम्रभर जीया जिन जिन  अपनों से अलगाव का दुख उनके आंखों से एक भी आंसू न बहे मेरे अलगाव में...  मृत्यु संवाद नहीं करती है