तुम देख रही हो ना नदी के तट पर नारियल के तने हुए वृक्ष असंख्य वे खड़े रहते हैं नदी के लिए हर अच्छे-बुरे मौसम में होना चाहता हूं मैं भी नारियल का वह वृक्ष खड़ा /झूमता /तना हुआ तुम्हारे लिए जीवन के सभी मौसम में तुम बनो नदी म ैं बनूं नारियल का वृक्ष झूमता हुआ / तना हुआ २३/०१/२०१७
मेरा एकांत कमरे में छाये सन्नाटे का हिसाब जब लगाता हैं तब इतिहास अपने पन्नें खोलकर मेरे समक्ष आ बैठता हैं पर मेरी जिद्द होती हैं वर्तमान के लोहे सम कवच से मैं ढक दूं उसके पन्नें और घास पर बैठी ओस की बूँदे भर लाऊँ अपनी अँजुरी में , सींच दूँ फिर से एक और नींव भविष्य की तभी उस कमरे के सन्नाटे को चीर जाती हैं दीवार पर लगी घड़ी संकेत देती हैं प्रहर के गुजर जाने का।