वो औरत थी उसकी वो जब चाहता अपनी मर्ज़ी से उसे अलगनी पर से उतारता इस्तेमाल करता और फिर वही ऱख देता फिर आता फिर जाता जितनी बार उसे उतारा जाता उसके शरिर मे एक नस टूट जाती चमड़ी से कुछ लहू नजर आता जितनी बार उसे उतारा जाता उसके नाखुनों से भूमि कुरेदी जाती हर कुरदन जन्म देती एक सवाल उसके आँखो का खा़रापानी जम जाता उसके घाव पे उसके लड़ख़डा़ते पैर रक्तरंजित मन उसकी लाचारी उसकी बेबसी उन्ह तमाम पुरूषो के लिये एक प्रश्न छोड़ जाती है औरत केवल देह मात्र है ?
1. उस साल मेरे शहर में बहुत सी प्रतिमाओं का अनावरण हुआ था और उसी साल बहुत से बेघरों को उ न प्रतिमाओं के नीचे आश्रय मिला था 2. एका अरसे बाद मैं रेलवे स्टेशन पर गया पर मुझे ना तुम्हारे पास आना था ना ना तुम मेरे पास आ रही थी बस में इस आने जाने वाले खेल की यादों में फिर से एक बार डुब जाना चाहता था झूठा ही सही फिर एक बार में तुम्हें सच मानकर जीना चाहता था