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मई, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उन्ह नजरों से मै बचती हुं

तुम्हारी नजर जब  मेरी बुद्धि की योग्यता को  छोड़कर मेरे देह का सफर तय करने लगती है  तब तुम अपनी मां के गर्भ के कितने रह जाते हो औरत केवल देह से नहीं बनती है उसकी अपनी  व्यथाये और यातनाएं भी होती हैं

माँ

माँ उनकी स्मृतियों को नमन  घर के दालान को खाली कर पांव फटते अंधयारे में पहली रेलगाड़ी से गाँव से लेकर आया था तुम्हे माँ तुम्हारी कमजोर आँखों ने कितना भर देखा होगा उस सुबह अंतिम बार अपने घर को माँ तुम्हारे जाने से कुछ नहीं बदलेगा केवल इतना भर होगा अब कभी मैं इस भीड़ से भरे शहर में स्टेशन से उतरकर मेरे पिछे चलने वाली माँ को अपने घर की तरफ लेकर नही जा पावुगा कभी मोबाइल में सुरक्षित रखी तुम्हारी दवाईयों की पर्ची गेलरी में मौजूद रहेगी माँ तुम्हारे कारण ही बहुत से रिश्ते अब तक टुटने से बचे थे अब बिना किसी अनबन के सदा के लिए खामोश हो जायेगे माँ तुम जबतक थी माँ मेरे महानगर के घर में भी एक गाँव किस्से कहानियों के साथ आबाद था माँ अब घर के दालान का इंतजार और वापसी में मेरे खाली हाथ

जीवन यही है

तजुर्बा जब  खुद के कंधों से  खुद के ही कंधों को  सहारा देने की कला  सीखा जाता है  तो सफर बहुत आसान हो जाता है

पितृसत्ता

समंदर ने पानी उधार लिया है नदियों से जैसे उधार लेते हैं कुछ एक पिता बेटियों से उनकी संपत्ति और अधिकार के साथ चलाते हैं पितृसत्ता का साम्राज्य नदियाँ विलुप्त हो रही हैं समंदर को भविष्य की बंजरता  का आभास फिर भी नहीं हो रहा है