सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

माँ

घर के दालान को खाली कर पांव फटते अंधयारे में पहली रेलगाड़ी से गाँव से लेकर आया था तुम्हे माँ तुम्हारी कमजोर आँखों ने कितना भर देखा होगा उस सुबह अंतिम बार अपने घर को माँ तुम्हारे जाने से कुछ नहीं बदलेगा केवल इतना भर होगा अब कभी मैं इस भीड़ से भरे शहर में स्टेशन से उतरकर मेरे पिछे चलने वाली माँ को अपने घर की तरफ लेकर नही जा पावुगा कभी मोबाइल में सुरक्षित रखी तुम्हारी दवाईयों की पर्ची गेलरी में मौजूद रहेगी माँ तुम्हारे कारण ही बहुत से रिश्ते अब तक टुटने से बचे थे अब बिना किसी अनबन के सदा के लिए खामोश हो जायेगे माँ तुम जबतक थी माँ मेरे महानगर के घर में भी एक गाँव किस्से कहानियों के साथ आबाद था माँ अब घर के दालान का इंतजार और वापसी में मेरे खाली हाथ

तुम नहीं समझ सकते

नदी को समझने के लिए पानी होना पड़ता है  होती है भाषा फूलों की भी पर उसे समझने के लिए  तुम्हारा कपास सम मन होना जरुरी है  अकेलेपन की परिभाषा  तुम सीखना उससे  जो लाखों बुंदों के साथ  सफर तय कर आया तो था  पर कहीं  खाली टीन के डब्बे में  पडा़ रहा अंतिम क्षणों तक  तुम नहीं जान सकते  उस बीज का दुख़  जो धरती के गर्भ में  बड़े श्रम के साथ बना तो रहा  पर बंजरता के उपमा से नवाजा गया  तुम नहीं समझ सकते हो कभी  उस कवि की  व्यथा  जिससे  छीन लिया   कागज और कलम  जिम्मेदारी के चक्र ने और वो  रात- रात बिलखता रहा  आपने दुख को बयां न करने की स्थिति में तुम नहीं समझ सकते प्रेम में धोखा खाये उस औरत के दर्द को जो छिपाती है अपने ह्रदय के घाव  और संभालकर रखती है दुनिया के समक्ष अपने बेवफा प्रेमी का रुतबा.... 

थकान

अब नहीं थकती हूँ मैं क्योंकि थकान को मै  इसलिए अब महसूस नहीं कर सकती हूँ क्यूँ की थकान के अलावा और किसी भी भाव से अब मैं परिचित नहीं होती हूँ