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जून, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
तुम्हारा आना चाँद का आसमान में यूँ चले आना हौलें से मेरे दिल में तेरा दस्तक देना सूरज की किरणों का यूँ मुझ पर चमकना खुलें से मेरे माथे की बिंदी को तेरा चूम लेना कोयल का मेरी छत पर यूँ आकर कूकना हौलें से तेरे क़दमों की चहलक़दमी का उभरना धान की बालियों संग पवन का यूँ झूल जाना हॉल से मेरे कानो में तेरा नाम यूँ आकर गुनगुनाना संध्या में मंदिर के घंटी का यूँ बज जाना हौलें से मेरे ह्रदय मे तेरा ईश्वर बन जाना ।।
सड़क मेरे गाँव आयी थी एक सड़क उसे देखने पूरा  गाँव चला चलते चलते पुँहचा शहर वहाँ कुछ सड़के मिली और मेरा गाँव सड़को की कतार में गुम हो गया आज सड़क टूटी है मंरम्मत के लिये रूठी है अब फिक्र नही सरकार को जब से अँगुठे ने पकडी है शहर की रफ्तार को यदा कदा दो जोडी आँखे रहती है सड़क पर खडी और जर्जर कन्धों पर सवार श्मशान की तरफ निकलती है रोज सूरज आता है आँगन में बच्चों की किलकारियाँ न पाकर समय के पहले ही लौट जाता है चाँद भी थोडा सकुचाता है टूटी छतों पर गिरते समय विस्थापित सा महसूस करता है जिस दिन सड़क से शहर का सफर तय किया गया उस दिन खलिहानों  से पंगडण्डीयों का सफर खत्म हुआ . 
शैल पुत्री शैल पुत्री सरिता मैं निर्झर बहती रहती हूँ हर चट्टानों को हर सीमाओं को मैं लाँघती रहती हूँ नगर-नगर डगर-डगर जीवन भरती रहती हूँ जन-जन के उर में नव प्राण भरती रहती हूँ जहाँ जहाँ से गुजरी मैं वहाँ-वहाँ जन्मी सभ्यता जहाँ जहाँ ठहरी मैं वहाँ-वहाँ बसी मानवता नदी हूँ चलते रहना मुझे रूके कभी ना मेरे पांव ढूँढ रही मैं एक किनारा बने जो एक मेरा ठांव यात्रा मेरी जीवन सी, मिली अवेहलना हर्ष-दुत्कार सभी स्री जीवन है ही ऐसी हर भाव मुझे स्विकार अभी जब जब समाज ने चाहा धो दूँ उनके पापों का अंकुर समझा उनको मैने, जीवन यह नश्वर क्षणभंगुर शैल पुत्री सरिता मैं निर्झर बहती रहती हूँ