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क्षणिकाएँ


१.

तुम्हारे पास मेरा ना लौटना 
मेरा कहीं और जाने का संकेत नहीं है 
बस रिश्तो में भरोसे का 
कम होने का आघात हैं


२.

गति और ठहराव के 
बीच बहती हूँ मैं
नदी नहीं हुं मैं
पर नदी की तरह ही
रिश्तों में खुद को 
समर्पित करती हूँ मैं


३.

जब मैं तुम्हें खोने के डर से
मंदिरों की
सिढीया चढ़ रही थी
ठीक उसी समय 
तुम मुझे दूर करने के लिए
जख्म पर जख्म देकर
तमाम हदों को पार  कर रहे थे

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