पिता से भी अधिक
उसने मां को
पितृसत्ता की डोर को
कसते देखा था
जब बेटी ने
अपने सपने बोने के लिए
गजभर जमीन मांगी थी
तब बची कुची
तलवे की मिट्टी भी छान ली थी
जिस गगरी से उसने
कुए पर निशान बनाए थे
उस गगरी को भी
वापसी में उसने रोते देखा था
पर मां की आंखों में
एक आंसू तक नहीं उमडा था
गर्भनाल को शायद
किसी तिश्ण हत्यार से काटा था
इसीलिए शायद ममत्व को
कोमल धागे से नहीं
किसी कंटीली रस्सी से बांधा था
पितृसत्ता की परंपरा को
पिता से अधिक मां को
निभाते देखा था
इसीलिए आज इस
स्वार्थी संसार से उसने
अपना हाथ खींच लिया था
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