सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अगस्त, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अलविदा

१. हम दोनों के बीच हमेशा से एक मौन रात चलती रही  और उस रात को दिन में  तबदील करने के लिए  मैं कहीं जख्म सहती रही  और एक दिन सवेरा भी हो गया  पर सूरज की पीठ पर  मेरे नाम की जगह पर किसी और का नाम दर्ज करते  वो नजर आए उनकी दहलीज पर अलविदा के लिफाफे में दुवाओं का पैगाम लिखकर वहाँ से हम लौट आये २. स्विकार और अस्वीकार  के मध्य चलती रही हूं मैं  मेरे पैरों से छाले नहीं  अब तो रक्त बहने लगा है पर न तुम देख सके  न तुम मेरे ह्रदय में उठती  पीड़ा की ध्वनि सुन सके कभी अलविदा लिख दिया  मैंने रक्तरंजित नदी की देह पर

नदी

एक नदी दूर से  पत्थरों को तोड़ती रही  और अपने देह से  रेत को बहाती रही  पर रेत को थमाते हुए  सागर की बाहों में  उसने सदा से  अपने जख्मों को  छुपाकर रखा  और सागर बड़े गर्व से  किनारे पर रचता आया रेत का अम्बार और दुनिया भर के  अनगिनत प्रेमियों ने  रेत पर लिख डाले  अपने प्रेमी के नाम  और शुक्रिया करते रहे  समंदर के संसार का  और नदी तलहटी में  खामोशी से समाती रही  पर्दे के पीछे का दृश्य  जितना पीड़ादायक होता है  उतना ही ओझल  संसार की नज़रों से

क्षणिकाएँ

1. टूट कर बिखरना  और फिर फिर जुड़ना  इस सिलसिले में  प्रेम के निशान से अधिक  टूटे ह्रदय में जख्मों के निशान  बढ़ रहे थे और  बढ़ते ही जा रहे हैं 2. जो मन के  एहसासों को  नहीं समझता है उसे शब्दों की  भाषा में समझाना  व्यर्थ हैं  3. जिन्हें आदत होती हैं  जख्मों पर नए  जख्म रखने की  उन्हें पुराने जख्मों की  गाथा सुनाना व्यर्थ हैं

गुँजाइश न हो जहाँ

 समंदर में जिन्ह मछलियों के हिस्से  मछुआरे का जाल आया  उसका क्रंदन कभी नहीं सुना  समंदर ने क्योंकि वहांँ पुनः  आगमन की गुंजाइश नहीं होती हैं वृक्ष पर से पत्ते का विदा होने की ध्वनि नहीं गुंजती है कभी चहुँ दिशा में क्युं की वहाँ पुनः मिलन की गुँजाइश नही रहती है ढलती शाम में हाथ छुडाकर गये प्रेमी को नहीं रोकती वो प्रेमिका क्युं की प्रेम देह से नहीं मन से होता है मन को बांधा नहीं जाता है रोकने से केवल देह रुकती है मन नहीं इसलिए जाने वाले को अपना क्रुदन भी नहीं सुनाया जाता है