सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

औरत कब की मर चुकी है जो देह में बची है

वेश्याओं की दहलीज पर क्या किसी पुरुष ने  प्रेम निवेदन किया होगा? क्या कभी किसी पुरुष ने रात-भर उसके बालों में  गूंथे गये गज़रे के फूलो को  सुरक्षित छोड़ा होगा? क्या उसकी देह का नमक  चखते समय उसके मन के रिसते घाव  गिने होंगे? क्या किसी पुरुष ने  महसूसी होगी उसकी  बेचैन सांसे? जिसमें बदन की आग नहीं  बल्कि मन की भूख़ निहित हो  क्या किसी पुरुष ने  कभी उसके शरीर से  निकलकर उसके तकिए पर जमा  अश्रु की बूंदे देखी होंगी? क्या कोई पुरुष  उसके मन के स्पर्श को अपनी दहलीज के भीतर ले जाने का साहस  जुटा पाया होगा? क्या कभी कोठे के दरवाजे से  निकलकर कोई वेश्या पहुँची होगी किसी घर की  भित्तियों के भीतर किसी की बहू,पत्नी या माँ बनकर ? नहीं ना ! उसका कारण यहीं है कि औरत केवल देह में बची हुई है और देह में बची औरत  कब की मर चुकी है इसका अंदाजा शायद ही  कभी किसी को हो सके।

चूमना महज मोह नहीं है

मैं तुम्हें चूमना चाहती हूं जैसे श्रद्धा से चूमता है कोई ईश्वर की दहलीज मैं तुम्हें चूमना चाहती हूं जैसे मां अपने बच्चे को स्तनपान करते समय चूमती है उसका अंगूठा और तुम्हारा मुझे चूमना कुछ इस तरह से होगा जैसे अंनत काल से पड़े अज्ञानता की राशि को छूती है ज्ञान की रोशनी

गुलाब

*गुलाब* की पंखुड़ियों पर गिरी ओंस की बूंदें प्रमाण होती हैं किसानों के खेतों में गिरे पसीनों की उसने मिट्टी में सहेजें होते हैं रोटी, कपड़े और मकान के  कुछ चमकिले रंग फूलों के मुरझाने से उदास होती हैं स्त्री खोल देती हैं वो स्मृतियों की गांठें और बह जाता है नमक का दरिया कुछ इसी तरह अपनी फ़सल की बरबादी पर बच्चों के अंतड़ियों में पड़ी भूख लाल रक्त बन निकलता है आंखों से  गुलाब का खिलना केवल प्रेम को बचाने भर नहीं है बल्कि हर पंखुड़ियों के नीचे तह कर रखीं होती हैं ईश्वर ने एक जरूरत किसान की