सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अगस्त, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हत्या

तुम बड़े माहीर बनते जा रहे थें  हत्या को आत्महत्या का वस्त्र पहनाने में  तुमने मुझे कहा ज़हर पीकर मर जाओं  तुमने मुझे कहा नदी के सूपूंर्त हो जाओं  तुमने मुझे कहा पंखे से लटक कर मर जाओं पर मैंने साहस से जीवन चुना   पर तुम राक्षसीवृत्ती के थे  इसलिए तुमने हंत्यार ही चुना मेरे लिए  और जीवन हार गया

प्रेम

मै आप से जो कहती हूँ  वो असल में मुझे कहना ही नहीं होता है  जो कहना होता है  उसके लिए  कोई भाषा ही नहीं गढी़ हैं अब तक न ईश्वर ने न मनुष्यों ने मेरे इस जन्म से अजन्मे प्रेम के लिए  तुम्हारे उस संसार में  कहीं पर भी तिलभर जगह नहीं है पर मेरे हृदय में बसा प्रेम  सारा ब्रह्मांड व्याप्त कर सकता है  रंग कौन सा है इस प्रेम का  देश कौन सा है इस प्रेम का  और नाम  ?  हमने साथ-साथ नहीं सांझा की कोई गली कोई सड़क  ना कोई शहर ना गाँव हवा का ना रंग ना रूप  आसमान का कोई छोर  ना ओस की बूंदों का कोई घर इसलिए नहीं कह सकती  कभी जो तुमसे कहना चाहती हूं हमारे प्रेम की संवादोंकी भाषा गढ़ने में ईश्वर भी असहाय हैं

स्मृतियों में

आज भी वो पीठ करके सोती हैं उस ओर जो आज खाली हैं सिलवटें अब नहीं पडती हैं बिस्तरों पर तमाम सिलवटें धीरे-धीर उतरने लगी है उसके चहरे पर वो कभी नहीं देख सका उसे मन की आंखों से यदा-कदा जब  वो हाथ बढ़ाता उसकी ओर उसकी देह ही मुख़र होकर बोलती पर उस रात की सुबह में एक फर्क होता रसोईघर की टेबल पर देह का श्रम रखा मिलता सप्तपदी के उन्हं पाक वचनों में अग्नि की उस आँच में सिंदूर की रक्तिम रंग में उसकी होकर भी बार-बार  वो उसे खरीदते रहा और वो बिना खुद को बेचे नीलाम होती रही अपने ही आँगन में