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नदी की देह पर उगी पपड़ीयां

सूखी नदी के देह पर 
उगी पपड़ीयां बयां करती हैं 
नदी के मिटने का इतिहास 

टूटे नावों के और 
अपाहिज पतवार के 
अवशेषों की कहानियां 
दर्ज नहीं होती है कभी
ना ही प्यासे जानवरों की 
प्यास कोई विषय बन जाता है 

पर फरमान काटे जाते हैं 
उन तमाम मौसमों के नाम 
जिनके हाथों में हथकड़ी 
असंभव है 

और कलम की नोक से 
अदालत में बचाये जाते हैं
रेत माफियाओं की गर्दनें
विकास के नाम पर जहर उगलते 
कारखाने के मालिकों के बटवे

पर नदी की सुखी पपडियो में
दर्ज होते हैं उसके मिटने का एतिहास
और सभ्यता से असभ्यता की ओर
बडती अंधी पीडी का वर्तमान

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दु:ख

काली रात की चादर ओढ़े  आसमान के मध्य  धवल चंद्रमा  कुछ ऐसा ही आभास होता है  जैसे दु:ख के घेरे में फंसा  सुख का एक लम्हां  दुख़ क्यों नहीं चला जाता है  किसी निर्जन बियाबांन में  सन्यासी की तरह  दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे  भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय  बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता   कभी कभी सुख के पैरों में  अविश्वास के कण  लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर  दु:ख को गले लगाती हूं  और तय करती हूं एक  निर्जन बियाबान का सफ़र

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना

उसे हर कोई नकार रहा था

इसलिए नहीं कि वह बेकार था  इसलिए कि वह  सबके राज जानता था  सबकी कलंक कथाओं का  वह एकमात्र गवाह था  किसी के भी मुखोटे से वह वक्त बेवक्त टकरा सकता था  इसीलिए वह नकारा गया  सभाओं से  मंचों से  उत्सवों से  पर रुको थोड़ा  वह व्यक्ति अपनी झोली में कुछ बुन रहा है शायद लोहे के धागे से बिखरे हुए सच को सजाने की  कवायद कर रहा है उसे देखो वह समय का सबसे ज़िंदा आदमी है।