सूखी नदी के देह पर
उगी पपड़ीयां बयां करती हैं
नदी के मिटने का इतिहास
टूटे नावों के और
अपाहिज पतवार के
अवशेषों की कहानियां
दर्ज नहीं होती है कभी
ना ही प्यासे जानवरों की
प्यास कोई विषय बन जाता है
पर फरमान काटे जाते हैं
उन तमाम मौसमों के नाम
जिनके हाथों में हथकड़ी
असंभव है
और कलम की नोक से
अदालत में बचाये जाते हैं
रेत माफियाओं की गर्दनें
विकास के नाम पर जहर उगलते
कारखाने के मालिकों के बटवे
पर नदी की सुखी पपडियो में
दर्ज होते हैं उसके मिटने का एतिहास
और सभ्यता से असभ्यता की ओर
बडती अंधी पीडी का वर्तमान
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