हर महानगरों के बीचो -बीच ओवरपुल के नीचे बसता है, एक शहर रात में महंगे रोशनी में सोता है सिर के नीचे तह करके अंँधियारे का तंकिया यहाँ चुल्हें पर पकती है आधी रोटी और आधी इस शहर की धूल लोकतंत्र के चश्मे से नहीं दिखता यह शहर क्यों कि इनकी झोली में होते हैं इनके उम्र से भी अधिक शहर बदलने के पते यह शहर कभी किसी जुलूस में नहीं भाग लेता है ना ही रोटी कपड़े आवास की मांँग करता है पर महानगरों के बीचो-बीच उगते ये अधनंगे शहर हमारे जनगणना के खाते में दर्ज नही होते हैं पर न्याय के चौखट के बाहर नर या आदम का खेल खेलते अक्सर हमारे आँखों में खटकते है
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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वाह!गज़ब 👌
जवाब देंहटाएंसराहनीय सृजन।
सादर
बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह ! उन चोटों का क्या जो दिखाई नहीं देतीं ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक
जवाब देंहटाएंगहन सटीक भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत गहन ।
जवाब देंहटाएंआज कल तो देह के हत्यारों पर भी कफन पड़ा रहता है क्यों कि नाम सामने पता होते हुए भी साबित नहीं हो पाता ।