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जिस दिन

जिस दिन समाज का 
छोटा तबका 
बंदूक की गोलियों से 
और तलवार की धार से 
डरना बंद कर देगा ।

उस दिन समझ लेना 
बारूद के कारखानों में 
धान उग आएगा
बलिया हवा संग चैत  गायेगी ।

बच्चों के हाथों से 
आसमान में उछली गेंद पर 
लड़ाकू विमान की 
ध्वनियां नहीं टकराऐगी ।

जिस दिन समाज का 
छोटा तबका बंदूक 
और तलवार की भाषा को 
अघोषित करार देगा ।

उस दिन एक नई भाषा 
का जन्म होगा 
जिसकी वर्णमाला से 
शांति और अहिंसा के
नारों का निर्माण होगा ।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 20 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  2. अहोभाव, एक प्रेमपूर्ण कविता

    जवाब देंहटाएं
  3. आपने बिल्कुल सही बात कही जिस दिन डरना छोड़ देंगे लोग उस दिन कोई उन्हें दबा नहीं सकता और एक नए ही समाज का निर्माण हो जाएगा !
    बहुत ही उम्दा रचना.....

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक संदेश देती बहुत सुंदर रचना
    बधाई

    जवाब देंहटाएं

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