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सच कहती हो तुम

तुम्हारी उदासियों से देखो 
कैसी उड़ गई है 
ओस की बूंदों की जान 
सच कहती हो तुम
खुशियां कितनी नाजुक होते हैं 
तुम्हारी तरह 
उदासियों को कर दो
स्थगित

१६/१२/२०१६

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. तुम्हारी उदासियों से देखो
    कैसी उड़ गई है
    ओस की बूंदों की जान - प्रयोग सुंदर
    सच कहती हो तुम
    खुशियां कितनी नाजुक होती हैं
    तुम्हारी तरह
    उदासियों को कर दो
    स्थगित
    kabirakhadabazarmein.blogspot.com

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