आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
तुम्हारी उदासियों से देखो कैसी उड़ गई है ओस की बूंदों की जान - प्रयोग सुंदर सच कहती हो तुम खुशियां कितनी नाजुक होती हैं तुम्हारी तरह उदासियों को कर दो स्थगित kabirakhadabazarmein.blogspot.com
घर के भीतर जभी पुकारा मैने उसे प्रत्येक बार खाली आती रही मेरी ध्वनियाँ रोटी के हर निवाले के साथ जभी की मैनें प्रतीक्षा तब तब सामने वाली कुर्सी खाली रही हमेशा देर रात बदली मैंने अंसख्य करवटें पर हर करवट के प्रत्युत्तर में खाली रहा बाई और का तकिया एक असीम रिक्तता के साथ अंनत तक का सफर तय किया है जहाँ से लौटना असभव बना है अब
हर रिश्ते में दो लोग होते हैं एक वफादार एक बेवफा वफादार रिश्ता निभाने की बातें करता है बेवफा बीच रास्ते में छोड़कर जाने की बातें करता है वफादार रुक जाने के लिए सौ कसमें देता है वहीं बेवफा वफादार को इतना मजबूर कर देता है कि वफादार लौट जाता है और बेवफा आगे निकल जाता है रिश्ते की यहीं कहानी होती है अक्सर
बहुत से सपने मर जाते हैं मन के दराज़ के भीतर कुछ तो आत्मा से जुड़े होते हैं वहां पडे़ होते है शहरों के पत्ते नामों के साथ लगे सर्वनाम भी और ताउम्र इन सपनों के पार्थिव शरीर उठाये हम चलते हैं मृत्युशय्या पर हम अकेले नहीं हमारे साथ जलता हैं वो सब जिन्होंने ताउम्र जलाया होता है हमें बिना आग बिना जलावन के
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंतुम्हारी उदासियों से देखो
जवाब देंहटाएंकैसी उड़ गई है
ओस की बूंदों की जान - प्रयोग सुंदर
सच कहती हो तुम
खुशियां कितनी नाजुक होती हैं
तुम्हारी तरह
उदासियों को कर दो
स्थगित
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
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