आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
तुम्हारी उदासियों से देखो कैसी उड़ गई है ओस की बूंदों की जान - प्रयोग सुंदर सच कहती हो तुम खुशियां कितनी नाजुक होती हैं तुम्हारी तरह उदासियों को कर दो स्थगित kabirakhadabazarmein.blogspot.com
घर की नींव बचाने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है दोनों जितने जरूरी नहीं है उतने जरूरी भी है पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं घर की नीव दीवारों के साथ पर जितना जरूरी नहीं है उतना जरुरी भी हैं दो लोगों का एक साथ होना
काली रात की चादर ओढ़े आसमान के मध्य धवल चंद्रमा कुछ ऐसा ही आभास होता है जैसे दु:ख के घेरे में फंसा सुख का एक लम्हां दुख़ क्यों नहीं चला जाता है किसी निर्जन बियाबांन में सन्यासी की तरह दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता कभी कभी सुख के पैरों में अविश्वास के कण लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर दु:ख को गले लगाती हूं और तय करती हूं एक निर्जन बियाबान का सफ़र
1. धुएँ की एक लकीर थी शायद मैं तुम्हारे लिये जो धीरे-धीरे हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंतुम्हारी उदासियों से देखो
जवाब देंहटाएंकैसी उड़ गई है
ओस की बूंदों की जान - प्रयोग सुंदर
सच कहती हो तुम
खुशियां कितनी नाजुक होती हैं
तुम्हारी तरह
उदासियों को कर दो
स्थगित
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
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