अपना खाली समय गुजारने के लिए  कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए  |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं,  एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है ,  और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है |     हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह  खत्म करने के बाद फेंक देते हैं |     या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद  उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है |  वैसे ही हम कही बार रिश्तें को  डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं     पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं ,  जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना  रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है |   ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय  और तकलीफ ही आती है |     माना की इस तेज रफ्तार जीवन की   शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है  और इस, चलन के चलते हमने  धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है  पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर  मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं   
 
 
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(३०-१२ -२०२१) को
'मंज़िल दर मंज़िल'( चर्चा अंक-४२९४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद आदरणीय
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र
हटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंगहन प्रतीक!
जवाब देंहटाएंनमक का हिसाब
आज भी बाकी है।
वाह!
सुन्दर
जवाब देंहटाएंकैलेंडर केवल
जवाब देंहटाएंकुछ पन्नों का
महज एक दस्तावेज है
मेरे लिए
जिसकी हर तारिख पे
नमक का हिसाब
आज भी बाकी है
बहुत सटीक ...सार्थक एवं लाजवाब सृजन
वाह!!!