घर की नींव बचाने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है दोनों जितने जरूरी नहीं है उतने जरूरी भी है पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं घर की नीव दीवारों के साथ पर जितना जरूरी नहीं है उतना जरुरी भी हैं दो लोगों का एक साथ होना
काली रात की चादर ओढ़े आसमान के मध्य धवल चंद्रमा कुछ ऐसा ही आभास होता है जैसे दु:ख के घेरे में फंसा सुख का एक लम्हां दुख़ क्यों नहीं चला जाता है किसी निर्जन बियाबांन में सन्यासी की तरह दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता कभी कभी सुख के पैरों में अविश्वास के कण लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर दु:ख को गले लगाती हूं और तय करती हूं एक निर्जन बियाबान का सफ़र
1. धुएँ की एक लकीर थी शायद मैं तुम्हारे लिये जो धीरे-धीरे हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(३०-१२ -२०२१) को
'मंज़िल दर मंज़िल'( चर्चा अंक-४२९४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
धन्यवाद आदरणीय
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र
हटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंगहन प्रतीक!
जवाब देंहटाएंनमक का हिसाब
आज भी बाकी है।
वाह!
सुन्दर
जवाब देंहटाएंकैलेंडर केवल
जवाब देंहटाएंकुछ पन्नों का
महज एक दस्तावेज है
मेरे लिए
जिसकी हर तारिख पे
नमक का हिसाब
आज भी बाकी है
बहुत सटीक ...सार्थक एवं लाजवाब सृजन
वाह!!!