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क्षणिकाएं

१)

अनगिनत वृक्ष
दुनिया भर की अलमारियों में
बैठे हैं मौन
और दीमकें जता रही हैं
उन पर अपना हक।

२)

संमदर में रोती हुई मछलीयां 
सीप में रख देती हैं 
अपने आंसूओं को 
जो मोती बन चमकते हैं 
धरती के गालों पर

३)

हर पार्वती के हिस्से 
नहीं होते शिव 
फिर भी वो अर्द्धनारीश्वर के रूप में
विचरती रहती है इस धरा पर !


४)

मैं तुम्हारे आंगन कि कृष्ण तुलसी बनकर 
तुम्हारे ललाट पर स्थित 
समस्त कठिन रेखाएं खींच कर 
भस्म कर अपने देह के अंदर धर लूंगी

५)

हम दोनों के प्रेम में स्थित अधूरापन
तुम्हारे लौटने की परिभाषा है


टिप्पणियाँ

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 04-06-2021) को "मौन प्रभाती" (चर्चा अंक- 4086) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर क्षणिकाओं का अनूठा सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर औऱ भावपूर्ण क्षणिकाएं
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. संमदर में रोती हुई मछलीयां
    सीप में रख देती हैं
    अपने आंसूओं को
    जो मोती बन चमकते हैं
    धरती के गालों पर
    ..."
    ...........अहा...वाह! प्रकृति के साथ कितना सुन्दर तरिके से संबंध बनाकर इन पंक्तियों को प्रस्तुत किया है। इनके भाव सीधे हृदय को स्पर्श कर गयें। बहुत ही बेहतरीन रचना।

    जवाब देंहटाएं

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