1 मैं उम्र के उस पड़ाव पर तुमसे भेंट करना चाहती हूं जब देह छोड़ चुकी होगी देह के साथ खुलकर तृप्त होने की इच्छा और हम दोनों के ह्रदय में केवल बची होगी निस्वार्थ प्रेम की भावना क्या ऐसी भेंट का इंतजार तुम भी करोगे 2 पत्तियों पर कुछ कविताएं लिख कर सूर्य के हाथों लोकार्पण कर आयी हूं अब दुःख नहीं है मुझे अपने शब्दों को पाती का रुप न देने का ना ही भय है मुझे अब मेरी किताब के नीचे एक वृक्ष के दब कर मरने का 3 आंगन की तुलसी पूरा दिन तुम्हारी प्रतिक्षा में कांट देती है पर तुम्ह कभी उसके लिए नहीं लौटे 4 कितना कुछ लिखा मैंने संघर्ष की कलम से समाज की पीठ पर कागज की देह पर उकेरकर किताबों की बाहों में उन पलों को मैं समर्पित कर सकूं इतने भी सकुन के क्षण जिये नहीं मैंने 5 मेरी नींद ने करवट पर सपनों में दखलअंदाजी करने का इल्जाम लगाया है
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआम जनता को समझनी होगी ज़िम्मेदारी तभी देश राष्ट्र टिक पाते हैं ... उजाला ख़ुद लाना होगा ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंमुरदों का चादर बन
जवाब देंहटाएंधरा के आत्मा से
उर्जा़ का निकालों रस
उड़ेल दो आसमान पे
धमा दो बाशिदे के
पिठ पर एक पंख
भेदकर अंधकार को
तबदिल हो उजाले में
वाह बेहतरीन रचना
बढ़िया रचना
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