बौंना नज़र आता हैं
समाज का बांशिदा
जिम्मेदारी को रख़
नेताओं के कधें
केवल शब्दों का
छोड़ देता है बाण
लो *प्रतिज्ञा* आज
उठाओं जिम्मेदारी का
कफ़न जो गिरा
विकास पर
मुरदों का चादर बन
धरा के आत्मा से
उर्जा़ का निकालों रस
उड़ेल दो आसमान पे
धमा दो बाशिदे के
पिठ पर एक पंख
भेदकर अंधकार को
तबदिल हो उजाले में
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआम जनता को समझनी होगी ज़िम्मेदारी तभी देश राष्ट्र टिक पाते हैं ... उजाला ख़ुद लाना होगा ...
जवाब देंहटाएंमुरदों का चादर बन
जवाब देंहटाएंधरा के आत्मा से
उर्जा़ का निकालों रस
उड़ेल दो आसमान पे
धमा दो बाशिदे के
पिठ पर एक पंख
भेदकर अंधकार को
तबदिल हो उजाले में
वाह बेहतरीन रचना
बढ़िया रचना
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