सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्रहर



मेरा एकांत 
कमरे में छाये
सन्नाटे का हिसाब 
जब लगाता हैं 

तब इतिहास
अपने पन्नें खोलकर 
मेरे समक्ष आ बैठता हैं 

पर मेरी जिद्द होती हैं 
वर्तमान के लोहे सम 
कवच से मैं ढक दूं
उसके पन्नें

और घास पर बैठी
ओस की बूँदे भर लाऊँ
अपनी अँजुरी में ,

सींच दूँ फिर से 
एक और नींव भविष्य की 

तभी उस कमरे के 
सन्नाटे को चीर जाती हैं 
दीवार पर लगी घड़ी 
 संकेत देती हैं 
प्रहर के गुजर जाने का।

टिप्पणियाँ

  1. वाह! खूबसूरत सृजन...एकांत या अकेलापन?

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. और घास पर बैठी
    ओस की बूँदे भर लाऊँ
    अपनी अँजुरी में ,

    सींच दूँ फिर से
    एक और नींव भविष्य की
    वाह!!!
    सकारात्मकता की ओर...
    बहुत सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रिक्तता

घर के भीतर जभी  पुकारा मैने उसे  प्रत्येक बार खाली आती रही  मेरी ध्वनियाँ रोटी के हर निवाले के साथ जभी की मैनें प्रतीक्षा तब तब  सामने वाली  कुर्सी खाली रही हमेशा  देर रात बदली मैंने अंसख्य करवटें पर हर करवट के प्रत्युत्तर में खाली रहा बाई और का तकिया  एक असीम रिक्तता के साथ अंनत तक का सफर तय किया है  जहाँ से लौटना असभव बना है अब

रिश्ते

हर  रिश्ते  में दो लोग होते हैं एक वफादार एक बेवफा वफादार रिश्ता निभाने की बातें करता है बेवफा बीच रास्ते में छोड़कर जाने की बातें  करता है वफादार रुक जाने के लिए सौ  कसमें देता है वहीं बेवफा वफादार को इतना मजबूर कर देता है कि वफादार  लौट जाता है और बेवफा आगे निकल जाता है रिश्ते की यहीं कहानी होती है अक्सर

सपने

बहुत से सपने मर जाते हैं मन के दराज़ के भीतर कुछ तो आत्मा से जुड़े होते हैं वहां पडे़ होते है शहरों के पत्ते नामों के साथ लगे सर्वनाम भी और ताउम्र इन सपनों के पार्थिव शरीर उठाये हम चलते हैं मृत्युशय्या पर हम अकेले नहीं हमारे साथ जलता हैं वो सब जिन्होंने ताउम्र जलाया होता है हमें बिना आग बिना जलावन के