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एक कविता


चालाकियां ईमानदारी और धुर्तता
संसार के रंगमंच पर
प्रमुख भूमिकाएं निभा रही हैं

इस जंग लगे समय में
ईमानदारी बेमनियों के घर
पानी भर रही है

कुछ तथाकथित नरियाँ
अपने मुलायम उंगलियों के स्पर्श से
कामयाबी के कंधे छू रही हैं

वहीं कुछ पुरुष वक्र दृष्टि से
आधी आबादी की बुद्धि की तरफ कम
देह की और अधिक आकर्षित होता जा रहा है

साधु संतों के भेष के पीछे
धर्म कम और मंक्कारी और वासनाओं का
बाजार अधिक फल-फुल रहा है

सूरज की पहली किरण के साथ
सच माथें पर काली पट्टी बांधे
झूठ के दरबार में झुक कर सलाम कर रहा है

पर परिवर्तन के नियम से कोई नहीं बचा है
ना धरा ना आसमान ना इंसान

समय का पहियां अपनी रफ्तार पकड़ लेगा
कुम्हार के चाक पर फिसलती
अनावश्यक मिट्टी की भांति
बेइमानिक का यह फलता फुलता बाजार
अस्तित्वहीन होकर नष्ट होगा
पुनरुत्थान की किरणों पर बैठ
सच दतुरी मुस्कान के साथ मुस्कुरा उठेगा


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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

क्षणिकाएँ

1. धुएँ की एक लकीर थी  शायद मैं तुम्हारे लिये  जो धीरे-धीरे  हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना