शाम जब अंधकार की पोटली
खोल देती है
तब शिद्दत से महसूस होती हैं
किसी की कमी
काश वो जुगनू की तरह
कभी देता दस्तक
और इस भयावह रात के
डरावने क्षणों पर पंख फैलाकर बैठ जाता
बिस्तरों पर पड़ी सिलवटें
गवाह है उन करवटों की
जो उस ओर का खालीपन
रात रात भर अपने भीतर
सोकती रही और शिद्दत से
महसूस करती रही
किसी के चले जाने के बाद उसकी कमी
सूरज की जेब से निकल आए
एक दिन ऐसा भी
चल पडू मैं किसी यात्रा पर
और दरवाजे पे ताला नहीं
किसी की प्रतीक्षा की आंखें लगी हो
काश एक दिन ऐसा भी निकल आता
वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
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