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प्रेम 1

अगर प्रेम का मतलब 
इतना भर होता एक दूसरे से अनगिनत संवादों को समय की पीठ पर उतारते रहना

वादों के महानगर खड़ें करना
एक दूसरे के बगैर न रहकर हर प्रहर का  बंद दरवाजा खोल देना

अगर प्रेम की सीमा इतनी भर होती 
तो कबका तुम्हें मैं भुला देती 

पर प्रेम मेरे लिए आत्मा पर गिरवाई वो लकीर है 
जो मेरे अंतिम यात्रा तक रहेगी 
और दाह की भूमि तक आकर
मेरे देह के साथ मिट जायेगी
और हवा के तरंगों पर सवार हो
आसमानी बादल बनकर 
किसी तुलसी के हृदय में बूंद बन समा जाएगी 
तुम्हारा प्रेम मेरे लिए आत्मा पर गिरवाई 
वो लकीर है जो पुनः पुनः जन्म लेगी


टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १२ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर !! इसीलिए तो प्रेम आत्मा का स्वभाव है, या कहें उसका अस्तित्त्व है

    जवाब देंहटाएं

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