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नदी

एक नदी दूर से 
पत्थरों को तोड़ती रही 
और अपने देह से 
रेत को बहाती रही 

पर रेत को थमाते हुए 
सागर की बाहों में 
उसने सदा से 
अपने जख्मों को 
छुपाकर रखा 

और सागर बड़े गर्व से 
किनारे पर रचता आया
रेत का अम्बार

और दुनिया भर के 
अनगिनत प्रेमियों ने 
रेत पर लिख डाले 
अपने प्रेमी के नाम 
और शुक्रिया करते रहे 
समंदर के संसार का 

और नदी तलहटी में 
खामोशी से समाती रही 
पर्दे के पीछे का दृश्य 
जितना पीड़ादायक होता है 
उतना ही ओझल 
संसार की नज़रों से

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