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कितना विभत्स होता जा रहा है

यह खेल बहुत ही विभत्स
होता जा रहा है
जहाँ हम केवल
अपना स्वार्थ चर रहे हैं

भीड़ चल रही है निरंतर
दीमकों की तरह एक दूसरे का
धीरे-धीरे भक्षण करती हुई

यहाँ हर एक के होठों पर
एक बुँद रक्त लगा है
और सबके जबडों में
किसी न किसी के सपनों को
जबाने की गंध बसी है

यहाँ इंसान बधाई की मालायें
एक दूसरे को पहनाता रहा है
नफरतों के धागे में
फूलों की बली देकर

यहाँ कुछ पुरूष स्त्रियों को
उसके कर्मों से कम
और देह से अधिक जानने
की कवायत में लगा हुआ है

और कुछ स्त्रियाँ पुरूष को
कामयाबी के सफर की
सवारी समझ
हरदम चढ़ने के लिए
लालायित नजर आती है

यह दुनिया उसी दिन रहने
लायक हो जाएगी
जिस दिन इंसानों को गौण करके
अन्य जानवरों के लिए छोड़ी जाएगी

टिप्पणियाँ

  1. यूँ तो इंसान भी जानवर ही है ।।
    जबाने के स्थान पर चबाने आना चाहिए शायद ।
    जब सब इसी भीड़ का हिस्सा हैं तो किसी से किसी तकरार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. यहाँ इंसान बधाई की मालायें
    एक दूसरे को पहनाता रहा है
    नफरतों के धागे में
    फूलों की बली देकर
    वाह!!!
    इंसान अब गौण होने ही चाहिए
    लाजवाब सृजन

    जवाब देंहटाएं

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