सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कितना विभत्स होता जा रहा है

यह खेल बहुत ही विभत्स
होता जा रहा है
जहाँ हम केवल
अपना स्वार्थ चर रहे हैं

भीड़ चल रही है निरंतर
दीमकों की तरह एक दूसरे का
धीरे-धीरे भक्षण करती हुई

यहाँ हर एक के होठों पर
एक बुँद रक्त लगा है
और सबके जबडों में
किसी न किसी के सपनों को
जबाने की गंध बसी है

यहाँ इंसान बधाई की मालायें
एक दूसरे को पहनाता रहा है
नफरतों के धागे में
फूलों की बली देकर

यहाँ कुछ पुरूष स्त्रियों को
उसके कर्मों से कम
और देह से अधिक जानने
की कवायत में लगा हुआ है

और कुछ स्त्रियाँ पुरूष को
कामयाबी के सफर की
सवारी समझ
हरदम चढ़ने के लिए
लालायित नजर आती है

यह दुनिया उसी दिन रहने
लायक हो जाएगी
जिस दिन इंसानों को गौण करके
अन्य जानवरों के लिए छोड़ी जाएगी

टिप्पणियाँ

  1. यूँ तो इंसान भी जानवर ही है ।।
    जबाने के स्थान पर चबाने आना चाहिए शायद ।
    जब सब इसी भीड़ का हिस्सा हैं तो किसी से किसी तकरार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. यहाँ इंसान बधाई की मालायें
    एक दूसरे को पहनाता रहा है
    नफरतों के धागे में
    फूलों की बली देकर
    वाह!!!
    इंसान अब गौण होने ही चाहिए
    लाजवाब सृजन

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

क्षणिकाएँ

1. धुएँ की एक लकीर थी  शायद मैं तुम्हारे लिये  जो धीरे-धीरे  हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना