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प्रतिक्षाऐं

प्रतिक्षाऐं  रेत की तरह
फिसलती हैं
आँखों में घड़ी की
सुई की तरह चुंभती हैं

घने बर्फबारी के बीच
प्रतिक्षाओं के क्षण
दावाग्नी के कण बन
तपिश पैदा करते हैं

प्रतिक्षाऐं हथेलियों पर
नमक की खेती करके
यादों के फसल कांटती हैं

प्रतिक्षाऐं अनादि काल से
ओसरे पर बैठे बूढ़ी माई जैसी बनने पर
उस जगह से उठने का
संकेत देती हैं

प्रतिक्षाऐं सफल रही तो
अर्थ है नहीं व्यर्थ हैं

टिप्पणियाँ

  1. प्रतिक्षाऐं सफल रही तो
    अर्थ है नहीं व्यर्थ हैं
    सम्पूर्ण रचना का सार यही है
    बहुत सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रतीक्षा
    थमी हुई घडी की
    सूईयों की तरह
    समय की बोझिलता
    पीठ पर लादे
    चौखट की
    आहटों को गिनती है.
    -----
    सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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