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प्रतिक्षाऐं

प्रतिक्षाऐं  रेत की तरह
फिसलती हैं
आँखों में घड़ी की
सुई की तरह चुंभती हैं

घने बर्फबारी के बीच
प्रतिक्षाओं के क्षण
दावाग्नी के कण बन
तपिश पैदा करते हैं

प्रतिक्षाऐं हथेलियों पर
नमक की खेती करके
यादों के फसल कांटती हैं

प्रतिक्षाऐं अनादि काल से
ओसरे पर बैठे बूढ़ी माई जैसी बनने पर
उस जगह से उठने का
संकेत देती हैं

प्रतिक्षाऐं सफल रही तो
अर्थ है नहीं व्यर्थ हैं

टिप्पणियाँ

  1. प्रतिक्षाऐं सफल रही तो
    अर्थ है नहीं व्यर्थ हैं
    सम्पूर्ण रचना का सार यही है
    बहुत सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रतीक्षा
    थमी हुई घडी की
    सूईयों की तरह
    समय की बोझिलता
    पीठ पर लादे
    चौखट की
    आहटों को गिनती है.
    -----
    सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

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