1 मैं उम्र के उस पड़ाव पर तुमसे भेंट करना चाहती हूं जब देह छोड़ चुकी होगी देह के साथ खुलकर तृप्त होने की इच्छा और हम दोनों के ह्रदय में केवल बची होगी निस्वार्थ प्रेम की भावना क्या ऐसी भेंट का इंतजार तुम भी करोगे 2 पत्तियों पर कुछ कविताएं लिख कर सूर्य के हाथों लोकार्पण कर आयी हूं अब दुःख नहीं है मुझे अपने शब्दों को पाती का रुप न देने का ना ही भय है मुझे अब मेरी किताब के नीचे एक वृक्ष के दब कर मरने का 3 आंगन की तुलसी पूरा दिन तुम्हारी प्रतिक्षा में कांट देती है पर तुम्ह कभी उसके लिए नहीं लौटे 4 कितना कुछ लिखा मैंने संघर्ष की कलम से समाज की पीठ पर कागज की देह पर उकेरकर किताबों की बाहों में उन पलों को मैं समर्पित कर सकूं इतने भी सकुन के क्षण जिये नहीं मैंने 5 मेरी नींद ने करवट पर सपनों में दखलअंदाजी करने का इल्जाम लगाया है
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना रविवार १२ जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद
हटाएंसटीक , कितना ही खत्म करने की कोशिश करो , उग ही आती हैं लड़कियाँ । बहुत सुंदर और गंभीर रचना ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंअद्भुत ! नमक स्वाद, संवेदनशीलता और पाषाण चटका कर उगने की शिद्दत का नाम स्त्री हो सकता है । अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंगज़ब की अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसंवेदना भी कराह उठे।
बेहद हृदयस्पर्शी रचना
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