युद्ध के ऐलान पर
किया जा रहा था
शहरों को खाली
लादा जा रहा था बारूद
तब एक औरत
दाल चावल और आटे को
नमक के बिना* बोरियों में बाँध रही थी
उसे मालूम था
आने वाले दिनों में
बहता हुआ आएगा नमक
और गिर जाएगा
खाली तश्तरी में
वह नहीं भूली
अपने बेटे के पीठ पर
सभ्यता की राह दिखाने वाली
बक्से को लादना
पर उसने इतिहास की
किताब निकाल रख दी
अपने घर के खिड़की पर
एक बोतल पानी के साथ
क्योंकि,
यह वक्त पानी के सूख जाने का है..!
Bhut khub
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र
हटाएंउम्दा
जवाब देंहटाएंआभार सर
हटाएंदर्द को शब्द देने में माहिर हो 💐
जवाब देंहटाएंन उतनी नहीं
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-03-2022) को चर्चा मंच "होली की दस्तूर निराला" (चर्चा अंक-4371) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर
हटाएंयुद्ध पर लिखी भावपूर्ण और सच को उजागर करती रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंहृदय को गहरे तक झकझोडती अभिव्यक्ति,कम शब्दों में गंभीर घाव।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सृजन।