१.
घोषणा पत्रों की योजनाएं
बड़ी ईमानदार लगती हैं ,
जब तक वो वृक्षों के
देह पर लिखी होती हैं
वरना नेताओं की वाणी का
जामा पहनते ही
बेईमानी के बाजारों का
चौसर का खेलने लगती हैं ।
२.
मेरा दस साल का बेटा
चुनावी घोषणापत्र
जोर-शोर से पढ़ रहा था
और मेरे बुजुर्ग पिता
व्यग्य और निराशा के
भाव लिए दीवार पर
टकटकी लगाए सुन रहे थे
और मैं उन दोनों के बीच
टूटी कड़ी सा खड़ा था ।
३.
घोषणा पत्रों का ठूंठ वृक्ष
चुनावी रैलियों में
फल फूल जाता है
अंगूठे में चढ़ी स्याही के साथ
दम तोड़ देता है ।
सैल
तीनों व्यंजना पूर्ण कविताएं हैं। बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाएँ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंउम्दा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी एक रचना शुक्रवार ७ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
नववर्ष मंगलमय हो।
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंआप को भी नववर्ष की शुभकामनाएं