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घोषणापत्र

१.

घोषणा पत्रों की योजनाएं 
बड़ी ईमानदार लगती हैं ,
जब तक वो वृक्षों के 
देह पर लिखी होती हैं 
वरना नेताओं की वाणी का 
जामा पहनते ही 
बेईमानी के बाजारों का 
चौसर का खेलने लगती हैं ।

२.

मेरा दस साल का बेटा
चुनावी घोषणापत्र
जोर-शोर से पढ़ रहा था
और मेरे बुजुर्ग पिता
व्यग्य और निराशा के
भाव लिए दीवार पर
टकटकी लगाए सुन रहे थे
और मैं उन दोनों के बीच
टूटी कड़ी सा खड़ा था ।

३.

घोषणा पत्रों का ठूंठ वृक्ष 
चुनावी रैलियों में 
फल फूल जाता है 
अंगूठे में चढ़ी स्याही के साथ
दम तोड़ देता है ।

सैल

टिप्पणियाँ

  1. तीनों व्यंजना पूर्ण कविताएं हैं। बहुत बढ़िया

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी एक रचना शुक्रवार ७ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।
    नववर्ष मंगलमय हो।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद
      आप को भी नववर्ष की शुभकामनाएं

      हटाएं

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रिश्ते

अपना खाली समय गुजारने के लिए कभी रिश्तें नही बनाने चाहिए |क्योंकि हर रिश्तें में दो लोग होते हैं, एक वो जो समय बीताकर निकल जाता है , और दुसरा उस रिश्ते का ज़हर तांउम्र पीता रहता है | हम रिश्तें को  किसी खाने के पेकट की तरह खत्म करने के बाद फेंक देते हैं | या फिर तीन घटें के फिल्म के बाद उसकी टिकट को फेंक दिया जाता है | वैसे ही हम कही बार रिश्तें को डेस्पिन में फेककर आगे निकल जाते हैं पर हममें से कही लोग ऐसे भी होते हैं , जिनके लिए आसानी से आगे बड़ जाना रिश्तों को भुलाना मुमकिन नहीं होता है | ऐसे लोगों के हिस्से अक्सर घुटन भरा समय और तकलीफ ही आती है | माना की इस तेज रफ्तार जीवन की शैली में युज़ ऐड़ थ्रो का चलन बड़ रहा है और इस, चलन के चलते हमने धरा की गर्भ को तो विषैला बना ही दिया है पर रिश्तों में हम इस चलन को लाकर मनुष्य के ह्रदय में बसे विश्वास , संवेदना, और प्रेम जैसे खुबसूरत भावों को भी नष्ट करके ज़हर भर रहे हैं  

क्षणिकाएँ

1. धुएँ की एक लकीर थी  शायद मैं तुम्हारे लिये  जो धीरे-धीरे  हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना