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क्षणिकाएँ

1.


धुएँ की एक लकीर थी 
शायद मैं तुम्हारे लिये 
जो धीरे-धीरे 
हवा में कही गुम हो गयी

2.


वो झूठ के सहारे आया था
वो झूठ के सहारे चला गया
यही एक सच था


3.


संवाद से
समाधि तक
का सफर
खत्म हो गया


4.


प्रेम दुनिया में
धीरे धीरे
बाजार की शक्ल
ले रहा है
प्रेम भी
कुछ इसी तरह
किया जा रहा है
लोग हर चीज को
छुकर दाम पूछते है
मन भरने पर
छोड़कर चले जाते हैं

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 07 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
  2. धिरे की जगह धीरे और पुछ की जगह पूछ होना चाहिए, सभी क्षणिकाएँ बहुत ही सुंदर हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब..शानदार क्षण‍िकायें

    जवाब देंहटाएं
  4. गणेश चतुर्थी की आपको हार्दिक शुभकामनाएं। रिद्धि सिद्धि के दाता गणपति सभी को आरोग्य व सुख समृद्धि प्रदान करें 🙏
    बहुत सुन्दर क्षण‍िकायें।

    जवाब देंहटाएं

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