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अबोध लड़की का दान



मुझे याद है
वो अबोध लडकी
अपने नन्हें हाथों से अपनी चोटियाें को संवारती
मुझे याद है
वो निच्छल चेहरा
लाल रंग की गुडिया
बस सपना था
हाथों से ककंड बीच सपनों को चुनना
जिस पर हरदम भय व अवसाद की मँडराती थी छाया

कहते हैं
माँ ने इस लडकी को
किसी और की गोद भरने के लिये
कर दिया दान
दे दिया गोद
दान तो होती हैं बेटियां
लेकिन यहाँ तो
बचपन ही छीन लिया

माँ शब्द का अर्थ
विषाद बना
मूक हुई वाणी उसकी
आँखें ही बोलती रही
वह भी अवसाद भरे
जख्मी शब्द

परिपक्वता
का दामन थाम लिया
मन की धरती पर कभी
किसी ने ममता के बीज न बोये
मन बोझ से दबा रहा
समय के पहले ही
पंखो को खोल दिया
नन्हीं सी पीठ पर
वक्त का भार झेल लिया
भूत से भविष्य तक
सोचती रही अबोध बच्ची
क्यों दिया दान बचपन में ही
क्यों दिया जाता है दान यौवन पर
क्यों होती है बटियों का ही दान

कावेरी

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