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नदी



सूरज के अस्त होने से 

छा जाता है

नदी के देह पर

एक सन्नाटा

मन में भर जाती

एक उदासीनता 

उसका अल्हडपन

ढूंढती रहती है

एक तलहटी

जिसकी गहराई मे

जा बैठती है वह 

मौन हो 

एक नई प्रतीक्षा की

नदी फिर जी उठती है

सूर्योदय के साथ

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