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धरती का एक टुकड़ा

धरती का एक टुकड़ा


धरती के उस टुकड़े पर
मैं लिखना चाहती हूं एक कविता

बर्बर अंधियारा जहां है व्याप्त
आये दिन युद्धों की घोषणाएं
सुनाई देती है साफ साफ और
खेल में तल्लीन किसी बच्चे के
आंखों में उतर आता है एक खौफ़

फूल तितलियां वहन कर रही है जहां
अपने देह पर उन लड़कियों की राख़
जिन्हें महज एक भूख़ का साधन
समझकर जलाया जा रहा है और
वीरान पड़े हैं वहां स्थित बगीचे

नेताओं के हाथ के चाबूक से
छिल गई है धरती की पीठ
शोषित जनता के आंखों की नमी
सोख रही है ज़मीं पर पड़ी बिवाईयां
गिध्द आसामान में दे रहे हैं पहरा

जब मैं लिखने लगी धरती के
इन तमाम टुकड़ों पर एक कविता
तब समस्त सृष्टि मेरी कविता का
हिस्सा बनती गई  और कुछ इस तरह

मेरी लेखनी ने विरोध का जयघोष किया
बच्ची की आंखों में अब तैरते फूल तितलियां
लड़कियां लहराती पंरचम निडरता का
चुनाव में अंगूठे पर लगने वाली स्याही
शोषितों ने भर दी है अब कलम में 
अब मेरे कविता के शब्द शब्द बने हैं
अंधियारे में *विश्वास* जगाता हथियार

टिप्पणियाँ

  1. मेरी लेखनी ने विरोध का जयघोष किया
    बच्ची की आंखों में अब तैरते फूल तितलियां
    लड़कियां लहराती पंरचम निडरता का
    चुनाव में अंगूठे पर लगने वाली स्याही
    शोषितों ने भर दी है अब कलम में
    अब मेरे कविता के शब्द शब्द बने हैं
    अंधियारे में *विश्वास* जगाता हथियार

    अति उत्तम ,लाजवाब बहुत सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. फूल तितलियां वहन कर रही है जहां
    अपने देह पर उन लड़कियों की राख़
    जिन्हें महज एक भूख़ का साधन
    समझकर जलाया जा रहा है और
    वीरान पड़े हैं वहां स्थित बगीचे
    पूरी कविता बहुत उत्तम प्रणाम नमन करता हूं

    जवाब देंहटाएं

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