जब तुम मुझसे मिलने आवोगे
सुनो ऋतुराज!
तुम जब मुझे मिलने आवोगे ना
न लाना कोई भी फूल
नही चाहती हूं मैं
हमारे मिलने से
कोई भी हो आहत हो
भर देना तुम मेरी माँग में
चमकिली किरण सूरज की
शाम जब उतर आये
लेकर थाल चाँदी की
सितारे रख देना
उस वादे के साथ मेरे आँचल में
होगा हर वो तारा गवाह
हमारे आनेवाले हर मिलन का
गर तुम जन्म लोगे विशाल पर्वत के रुप मे
तो मै हो जाऊंगी अंकुरित बेल के रुप मे
पसर जाउंगी तुम्हारी अंडिग छाती पर
गर तुम विशाल संमदर बन गंर्जन करोगे
तो मै जलपरी बन तुम्हारे तनमन में लहराउंगी
बहुत सुन्दर भाव और चित्रण। बधाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंजबरदस्त
जवाब देंहटाएंआभार सर
हटाएंकुछ नए बिम्ब चुने हैं आपने इस रचना में .. प्रेम की अनुभूति है ये रचना ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंआदरणीय महाशया ,
जवाब देंहटाएंपहली बार आया हूँ आपके ब्लॉग पर| बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना है
सादर |
स्वागत है आपका
हटाएंधन्यवाद