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लॉकडाउन


उतना आसान नहीं है
जितना दिख रहा है ये लॉक डाउन
अदृश्य जंजीरों से बंधे
अंदर ही अंदर  छटपटाना
दुनिया भर के लाखों लोगों की मृत्यु
रीते आंखों से देखना
उनके लिए तो उतना
आसान नहीं है ये लॉकडाउन

जिसका कल का कोई ठौर नहीं
जो हथेली पर भूख लेकर जीता है
फुटपाथ पर देह की तह करके सोता है
सड़कों पर भीख मांगते भिखारी
उनके लिए तो उतना
आसान नहीं है ये लॉकडाउन

भीड़ में खिलौने-गुब्बारे बेचते
किसी कोने में बैठे
मछली सब्जी बेचने वाले
दिन की कमाई अन्न की गवाही
इस तरह घर चलने वाले
उनके लिए तो उतना
आसान नहीं है ये लॉकडाउन

बेघर निराधार अनाथ
फ्लाऔवर के नीचे से नाले किनारे से
आसमान को ताकने वाले
उनके लिए तो उतना
आसान नहीं होगा ये लॉकडाउन

दिन-रात पति से पिटती औरतें
उनके साये से भी ड़रती
शारीरिक और मानसिक अत्याचार सहती
जो पहले से ही एक चक्रयुह में फंसी है
उनके लिए तो उतना
आसान नहीं होगा है ये लॉकडाउन

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