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इन्तजार

हर कण में होता है निहित
जन्म से लेकर मरण तक
दुख से लेकर सुख तक
फिर हो वो व्यवहार का बाजार
या हो वो भावनाओं  का संसार
निहारना कभी उस उदास चेहरें को
बेच रहा है जो गंली चौराहे पे
झाडू बरतन सब्जी खिलौना
इन चीज़ों के साथ साथ
लेकर घूमता  है वो एक इंतजार
सर का बोझ होकर थोडा सा हल्का
पुँहच जाता है उसकी जेब तक
खत्म होता है तब चंक्की चूल्हे का इन्तजार
सरहदों पे तैनात है अनगिनत इन्तजार
बूढ़े  चश्मे को बेटे के लौटने का इन्तजार
जीवन  संगिनी को है मिलन का इन्तजार
एक कदम के सरहदों से लौटने से
खत्म होते है कही कही इन्तजार
वंसुधरा को भी है इन्तजार
उसकी बंजरता के खत्म होने का
कुम्हार के चाक को भी है इन्तजार
फिर से जीवन की गति  लिये दौडने का
गाँव भी कर रहा है एक इंतजार
शहर का फिर से लौटने का। 

कावेरी

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
    बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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दु:ख

काली रात की चादर ओढ़े  आसमान के मध्य  धवल चंद्रमा  कुछ ऐसा ही आभास होता है  जैसे दु:ख के घेरे में फंसा  सुख का एक लम्हां  दुख़ क्यों नहीं चला जाता है  किसी निर्जन बियाबांन में  सन्यासी की तरह  दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे  भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय  बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता   कभी कभी सुख के पैरों में  अविश्वास के कण  लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर  दु:ख को गले लगाती हूं  और तय करती हूं एक  निर्जन बियाबान का सफ़र

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना

उसे हर कोई नकार रहा था

इसलिए नहीं कि वह बेकार था  इसलिए कि वह  सबके राज जानता था  सबकी कलंक कथाओं का  वह एकमात्र गवाह था  किसी के भी मुखोटे से वह वक्त बेवक्त टकरा सकता था  इसीलिए वह नकारा गया  सभाओं से  मंचों से  उत्सवों से  पर रुको थोड़ा  वह व्यक्ति अपनी झोली में कुछ बुन रहा है शायद लोहे के धागे से बिखरे हुए सच को सजाने की  कवायद कर रहा है उसे देखो वह समय का सबसे ज़िंदा आदमी है।