सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मुखौटे

मुखौटे इतने मिले
कि चेहरे याद ही नहीं रहे
अब अगर चेहरे मिल भी जाते हैं
तो बहुत तंग नजर आती हैं भरोसे की गलियाँ

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रिक्तता

घर के भीतर जभी  पुकारा मैने उसे  प्रत्येक बार खाली आती रही  मेरी ध्वनियाँ रोटी के हर निवाले के साथ जभी की मैनें प्रतीक्षा तब तब  सामने वाली  कुर्सी खाली रही हमेशा  देर रात बदली मैंने अंसख्य करवटें पर हर करवट के प्रत्युत्तर में खाली रहा बाई और का तकिया  एक असीम रिक्तता के साथ अंनत तक का सफर तय किया है  जहाँ से लौटना असभव बना है अब

रिश्ते

हर  रिश्ते  में दो लोग होते हैं एक वफादार एक बेवफा वफादार रिश्ता निभाने की बातें करता है बेवफा बीच रास्ते में छोड़कर जाने की बातें  करता है वफादार रुक जाने के लिए सौ  कसमें देता है वहीं बेवफा वफादार को इतना मजबूर कर देता है कि वफादार  लौट जाता है और बेवफा आगे निकल जाता है रिश्ते की यहीं कहानी होती है अक्सर

सपने

बहुत से सपने मर जाते हैं मन के दराज़ के भीतर कुछ तो आत्मा से जुड़े होते हैं वहां पडे़ होते है शहरों के पत्ते नामों के साथ लगे सर्वनाम भी और ताउम्र इन सपनों के पार्थिव शरीर उठाये हम चलते हैं मृत्युशय्या पर हम अकेले नहीं हमारे साथ जलता हैं वो सब जिन्होंने ताउम्र जलाया होता है हमें बिना आग बिना जलावन के