सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जीवन यात्रा

मेरा कहने लायक 
बहुत कम था मेरे पास 

कुछ सालों बाद 
तुम आए तुमने सदा कहां 

मुझे देख सकती हो तुम
हर उस रिश्ते में
जो तुम्हारे जीवन की बंजरता पर
कभी नहीं उग आये

कुछ सालों तक मेरी यात्रा में 
बहुत कुछ शामिल रहा 
मेरा कहने लायक 

एक दिन तुम बीच यात्रा में 
आगे चले गए और मैं 
छुटती गई तुम्हारे पास से 
थोड़ी-थोड़ी और एक दिन 
मैंने महसूस किया 
आज मेरे पास मेरा कहने लायक 
मैं भी नहीं बची हूँ

तब तक तुम भी आगे के रास्ते से 
ओझल होते गए और 
मेरा  आगे का रास्ता
 बहुत बड़ी खाई में तब्दील हो गया 
अब मेरा कहने लायक मेरे पास 
चंद सांसें हैं जो मृत्यु की प्रतीक्षा में लीन है

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जरूरी नही है

घर की नींव बचाने के लिए  स्त्री और पुरुष दोनों जरूरी है  दोनों जितने जरूरी नहीं है  उतने जरूरी भी है  पर दोनों में से एक के भी ना होने से बची रहती हैं  घर की नीव दीवारों के साथ  पर जितना जरूरी नहीं है  उतना जरुरी भी हैं  दो लोगों का एक साथ होना

दु:ख

काली रात की चादर ओढ़े  आसमान के मध्य  धवल चंद्रमा  कुछ ऐसा ही आभास होता है  जैसे दु:ख के घेरे में फंसा  सुख का एक लम्हां  दुख़ क्यों नहीं चला जाता है  किसी निर्जन बियाबांन में  सन्यासी की तरह  दु:ख ठीक वैसे ही है जैसे  भरी दोपहर में पाठशाला में जाते समय  बिना चप्पल के तलवों में तपती रेत से चटकारें देता   कभी कभी सुख के पैरों में  अविश्वास के कण  लगे देख स्वयं मैं आगे बड़कर  दु:ख को गले लगाती हूं  और तय करती हूं एक  निर्जन बियाबान का सफ़र

क्षणिकाएँ

1. धुएँ की एक लकीर थी  शायद मैं तुम्हारे लिये  जो धीरे-धीरे  हवा में कही गुम हो गयी 2. वो झूठ के सहारे आया था वो झूठ के सहारे चला गया यही एक सच था 3. संवाद से समाधि तक का सफर खत्म हो गया 4. प्रेम दुनिया में धीरे धीरे बाजार की शक्ल ले रहा है प्रेम भी कुछ इसी तरह किया जा रहा है लोग हर चीज को छुकर दाम पूछते है मन भरने पर छोड़कर चले जाते हैं