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कागजी फूल

तुम नहीं थक सकती 
ना ही तुम हो सकती हो उदास 

तुम्हारे थकने से 
कंधों पर मौजूद दायित्व का भार 
लुढ़ककर आ जाएगा नीचे 
टूट सकती है तुम्हारी रीढ़ और 
समय के पहले तुम्हारे रीढ़ का टूटना 
तुम्हारे श्रम के नीवं पर 
जो टिका है घर उसका ढ़हना होगा 

तुम नहीं हो सकती हो उदास और 
हो भी जाती हो उदास 
तो उगा देना अपने चेहरे पर 
वो कागजी फूल 
जिसका कोई मौसम नहीं होता हैं

थकी हुई देह लेकर भी चलना तुम 
उस जगह तक जहां जरूरत है 
तुम्हारी प्रार्थनाओं की और 
उदास मन को छोड़ देना 
थोड़ी देर के लिए 
कागजी फूलों के बगीचे में 

जिन्होंने अपने होने को कभी 
दर्ज नहीं किया तुम्हारे अपाहिज दिनों में भी 
पर तुम निभाना उन सब की इच्छाओं के 
को क्योंकि निस्वार्थ को आते-आते अभी समय है

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