उदासी भरे दिनों में
सबसे अधिक जरूरत
महसूस हुई उसे तुम्हारी
तुम हमेशा हल्के फुल्के दिनों में
मौजूद रहे सदा
उसके आंखों का भारीपन अक्सर
सजा लिया घास की पत्तियों ने अपने तन पर
धीरे-धीरे तुम उसके जीवन की
किताब से हटते गए
और स्मृतियों के दस्तावेजों में जुड़ते रहे
उसकी मुस्कुराहट तो हर किसी ने देखी
पर उसके बंद दीवारों के भीतर
उसके देह का सुख भोगने वाला भी
उसके मन की उदासी भरे दिनों में शामिल नहीं हो सका
उदासी भरे दिनों में
सबसे अधिक जरूरत महसूस हुई
उसे तुम्हारी
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